Chapter Title:

बाल विकास के सिद्धांत

Book Title:


Authors

Dr. Ramesh Chander
Assistant professor

Synopsis

जब बालक विकास की प्रथम अवस्था से द्वितीय अवस्था में प्रवेश करता है,तब हमें उस बालक में कुछ बदलाव दिखाई देते हैं।अतःअध्ययनों ने सिद्ध कर दिया है कि इस तरह के बदलाव निश्चित सिद्धांतों के अनुसार ही होते हैं।इन्ही परिवर्तनों को ही विकास के सिद्धांत कहा जाता है।
बाल विकास की अवधारणा 
ऽ    समय के साथ किसी व्यक्ति में हुए गुणात्मक एवं परिमाणात्मक परिवर्तन को उस व्यक्ति का विकास कहा जाता है।
ऽ    विकास के कई आयाम होते हैं। जैसे-शारीरिक विकास, सामाजिक विकास, संज्ञाात्मक विकास, भाषायी विकास, मानसिक विकास आदि।
ऽ    किसी बालक में समय के साथ हुए गुणात्मक एवं परिमाणात्मक परिवर्तन को बाल विकास कहा जाता है।
ऽ    बालक के शारीरिक, मानसिक एवं अन्य प्रकार के विकास कुछ विशेष प्रकार के सिद्धान्तों पर ढले हुए प्रतीत होते हैं। इन सिद्धान्तों को बाल विकास सिद्धान्त कहा जाता है।
ऽ    बाल विकास के सिद्धान्तों का जन शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए आवश्यक है। क्योंकि इन्हीं सिद्धान्तों के जन के आधार पर शिक्षक बालक-बालिकाओं मे समय के साथ हुए परिवर्तनों एवं उनके प्रभावों के साथ- साथ अधिगम से इसके सम्बन्धों को समझते हुए किसी विशेष शिक्षण प्रक्रिया को अपनाता है।
ऽ    किसी निश्चित आयु के बालकों की क्रियाओं को नियोजित करते समय शिक्षक को यह जानना आवश्यक हो जाता है कि उम्र आयु के बालकों से सामान्यतः किस प्रकार की शारीरिक व मानसिक क्षमता है, इन्हें किस प्रकार की सामाजिक क्रियाओं में  है। इसके लिए शिक्षक को उस आयु के सामान्य बालकों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक परिपक्वता के स्तर का पता  होना आवश्यक है, जिससे वह उनकी क्रियाओं को नियन्त्रित करके उन्हें अपेक्षित दिशा प्रदान कर सके।

Published

10 May 2022

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Details about the available publication format: Paperback

Paperback

ISBN-13 (15)

978-93-94411-16-6

How to Cite

Chander, R. . (Ed.). (2022). बाल विकास के सिद्धांत. In (Ed.), बाल्यावस्था और विकास (pp. 91-132). Shodh Sagar International Publications. https://books.shodhsagar.org/index.php/books/catalog/book/30/chapter/167