Chapter Title:

बाल्यावस्था और किशोरावस्था की अवधारणा

Book Title:


Authors

Dr. Ramesh Chander
Assistant professor

Synopsis

बाल्यावस्था और वृद्धिश् की पहली इकाई श्बाल्यावस्था और किशोरावस्थाश् है । विभिन्न संस्कृतियों एवं समाजों में बाल्यावस्था और किशोरावस्था के विभिन्न अर्थों को जानना उपयुक्त है। हम सभी यह सोचते हैं कि हम बाल्यावस्था और किशोरावस्था के प्रति सजग हैं जैसा कि हम इन चरणों को अनुभव करते हैं या हमारे पास इन चरणों के बच्चे हैं। हालाँकि हम बाल्यावस्था और किशोरावस्था के इन चरणों से गुजर चुके हैं, फिर भी हमें कुछ समस्याओं को सम्बोधित करना होता है जैसे - क्या विभिन्न संस्कृतियों में बच्चे बाल्यावस्था और किशोरावस्था को एक जैसा अनुभव करते हैं? नगरीकरण और आर्थिक परिवर्तन बाल्यावस्था और किशोरावस्था के निर्माण को किस प्रकार प्रभावित करेगी ।
विविध संस्कृतियों में बाल्यावस्था और किशोरावस्था की अवधारणा को समझकर आप इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि बाल्यावस्था और किशोरावस्था का निर्माण मूल रूप से विविध परिस्थितियों की सामाजिक-राजनैतिक यथार्थताओं पर आधारित है। शिक्षक या भावी शिक्षक के रूप में आपको अपने कक्षा-कक्ष में विविध परिस्थितियों से आने वाले बच्चों को समझने में मदद करेगी ।
बाल्यावस्था की अवधारणा
बच्चा और बाल्यावस्था शब्दों से हम सभी परिचित हैं। हम सभी उस उम्र से गुजर चुकें हैं जब हम बच्चे कहलाते थे और “बाल्यावस्था“ कहलाने वाली स्थिति को अनुभव कर चुके हैं। केवल बाल्यावस्था ही नहीं बल्कि हम विविध अनुभवों सहित किशोरावस्था की स्थिति से भी गुजर चुके हैं। बाल्यावस्था शब्द का अर्थ है बच्चा होने की स्थिति। बीसवीं शताब्दी के अन्त तक पृथक सामाजिक श्रेणी के रूप में बाल्यावस्था के विचार पर बहुत कम ध्यान दिया गया था। सांस्कृतिक मानदण्डों और अपेक्षाओं के अनुसार बाल्यावस्था की परिभाषा भी भिन्न होती है। प्रौढ़ों के रूप में हम बच्चों को उसी ढंग से देखते हैं, न कि अद्वितीय व्यक्तियों के रूप में जिनके पास विविध प्रकार के अनुभव,रूचियाँ, सीखने के तरीके और ज्ञान हैं। 

Published

10 May 2022

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Details about the available publication format: Paperback

Paperback

ISBN-13 (15)

978-93-94411-16-6

How to Cite

Chander, R. . (Ed.). (2022). बाल्यावस्था और किशोरावस्था की अवधारणा. In (Ed.), बाल्यावस्था और विकास (pp. 132-166). Shodh Sagar International Publications. https://books.shodhsagar.org/index.php/books/catalog/book/30/chapter/168