Chapter Title:

उपसंहार

Book Title:


Authors

Dr. Ramesh Chander
Assistant professor

Synopsis

मानव में विकास का होना एक ऐसी विशेषता होती है। जिसका प्रारंभ गर्भावस्था से ही हो जाता है। यह विकास जीवन भर निरंतर चलता रहता है। शरीर में विकास कि कुछ अवस्थाएं उम्र के साथ रुक जाती हैं। इन विकास को मानव वृद्धि कहते हैं। जबकि इसके विपरीत कुछ ऐसे विकास होते हैं जो अनेक प्रकार से लगातार होते रहते हैं। सामान्य आधार पर आपको वृद्धि एवं विकास के बारे में जानकारी एवं उनके महत्व को जानना आवश्यक है। सरल भाषा में कहें तो यदि शरीर के भौतिक रूप से विकास होता है तो उसे वृद्धि कहते हैं। जबकि मनुष्यों के आंतरिक अर्थात बौद्धिक एवं मानसिक स्तर पर विकास लगातार चलता रहता है। इस विकास को मानवीय विकास कहते हैं। भौतिक विकास केवल शरीर के कुछ विभिन्न तत्व में वृद्धि के कारण होता है जबकि मानवीय विकास व्यक्तियों में समय के साथ ज्ञान अर्जित करने के साथ बढ़ता है। मनुष्य में विकास की अवस्था भिन्न-भिन्न होती है। जैसा कि अध्याय 1 में बताया गया है कि मानव में वृद्धि एवं विकास होता है। वृद्धि भौतिक क्रिया है जबकि विकास एक आंतरिक क्रिया है। मानव विकास के लिए निम्नलिखित अवस्थाएं महत्वपूर्ण होती है। मानव का विकास गर्भावस्था, शैशवावस्था, किशोरावस्था, बाल्यावस्था, व्यस्कावस्था, प्रौढ़ावस्था, मध्य अवस्था और वृद्धावस्था में होती है। शैक्षणिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो मानव विकास के लिए बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था दो विशेष अवस्थाएं हैं। इन दोनों अवस्थाओं में व्यक्ति को आगे आने वाले जीवन के लिए आवश्यक व्यवहारों का प्रशिक्षण प्राप्त होता है। मानव विकास की प्रत्येक अवस्था की अपनी एक विशेषता होती है तथा अवस्था विशेष के लिए अपने अपने विकासात्मक कार्य होते हैं।

Published

10 May 2022

Series

Categories

Details about the available publication format: Paperback

Paperback

ISBN-13 (15)

978-93-94411-16-6

How to Cite

Chander, R. . (Ed.). (2022). उपसंहार. In (Ed.), बाल्यावस्था और विकास (pp. 167-173). Shodh Sagar International Publications. https://books.shodhsagar.org/index.php/books/catalog/book/30/chapter/169