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भाषा अधिगम के पाश्चात्य सिद्धांत
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Synopsis
भाषा एक ऐसी व्यवस्था है, जो समाज के लिए बहुत उपयोगी है। इसे बालक अपनी मातृभाषा में सहज वातावरण में रहते हुए उचित प्रयासों से सीखता है। संरचनात्मक व मनोभाषाविज्ञान दोनों ही भाषा विज्ञान से संबंधित है। संरचनात्मक भाषाविज्ञान जहां वाक्य की संरचना, वाक्य विन्यास से जुड़ा है,वही मनोभाषाविज्ञान में वाक विकार व मानसिक अभिरुचि स्मरण के विषय में चर्चा की जाती है। भाषा विज्ञान वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है इसके अंतर्गत भाषा मनोविज्ञान व संरचना की समन्वित प्रणाली पर विचार किया जाता है। बीसवीं शताब्दी आने के बाद संरचनात्मक व मनोभाषाविज्ञान पर बृहद रूप में कार्य व अनुसंधान किए जाने लगे। इनके अंतर्गत मान्य अधिगम सिद्धांत , वाचिक व्यवहार व भाषा के सार्वभौमिक तत्व, भाषा ,संज्ञान व मनोविज्ञान के मिले-जुले भाषिक रूपों के साथ भाषा की प्रवृत्ति और संरचना को समझने के प्रयास को एक साथ अध्ययन का क्षेत्र माना जाने लगा है। साथ ही बालक के शारीरिक, मानसिक परिवर्तनों,विकासात्मक अवस्था के अध्ययन को एक सतत प्रक्रिया मानकर भाषा विज्ञान को व्यापक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास किया जा रहा है।
जॉन डीवी (1859-1952)
जॉन डीवी अमेरिका के प्रसिद्ध शिक्षाविद व दार्शनिक हैं। उन्होंने हॉपकिंस विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। 1894 में उन्हें शिकागो विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र , मनोविज्ञान एवं शिक्षा विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं- हाउ वी थिंक, एजुकेशन ऑफ टुडे, प्रॉब्लम्स ऑफ मैन, द स्कूल एंड सोसाइटी, चाइल्ड एंड करिकुलम,साइकोलोजी, एप्लाइड साइकोलॉजी, एक्सपीरियंस एंड नेचर। डीवी के अनुसार शिक्षा अनुभव के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया है शिक्षा का असली मकसद बच्चे में सही रुझानों के द्वारा बुद्धि को विकसित करना है, शिक्षा जीवन की प्रमुख प्रक्रिया है, इसलिए यह जीवन भर चलती रहनी चाहिए। जॉन डीवी के दर्शन में अनुभव को प्रमुख स्थान दिया गया है। उनके अनुसार अनुभव -“आनुभविक दृष्टि से वस्तुएं मर्मस्पर्शी, कारुणिक, सुंदर, हास्य कर, स्थिर अशांत, सुखद, कष्टकर, भव्य, भयंकर होती है।
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