Chapter Title:

हिंदी शिक्षण की पाठ्यपुस्तकों का मूल्यांकन

Book Title:


Authors

Dr. Ramesh Chander
Assistant Professor

Synopsis

प्राचीन काल में लिपि के आविष्कार से पूर्व भाषा की शिक्षा मौखिक रुप से दी जाती थी । लिपि का आविष्कार हो जाने पर हस्तलिखित पांडुलिपियों का प्रयोग होने लगा। किंतु हाथ से लिखकर ग्रंथ तैयार करने में बड़ा परिश्रम होता था। अतः पाठ्य पुस्तकों का प्रचलन उस रूप में नहीं हो पाया जिस रूप में आज है। पांडुलिपियां कम हुआ करती थी, अतः शिक्षक मौखिक रूप से पढ़ाता था और छात्र उस सामग्री को याद कर लेते थे। मुद्रण कला के अविष्कार ने पाठ्यपुस्तकों को सुलभ बना दिया और धीरे- धीरे पाठ्य पुस्तकें संपूर्ण शिक्षा प्रणली का आधार बन गयी। अर्वाचीन शिक्षा पाठ्यपुस्तकों पर आधारित है। आधुनिक युग में ज्ञान, विज्ञान एवं तकनीकी के अत्यधिक विकास के कारण मौखिक शिक्षा देना दुष्कर ही नहीं असंभव कार्य है यदि यह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भाषा की पुस्तके तो साधन साध्य दोनों रूपों में प्रयोग की जाती हैं।
पाठ्य पुस्तकों का अर्थ
प्राचीन काल में पांडुलिपियाँ कम हुआ करती थी ,अतः अध्यापक मौखिक रूप में पढ़ा देता था और छात्र उस सामग्री को याद कर लिया करते थे। मुद्रण कला के आविष्कार ने पाठ्य-पुस्तकों की रचना को सुलभ बना दिया और धीरे-धीरे पाठ्य-पुस्तक शिक्षा प्रणाली का अनिवार्य अंग बन गयी ।
चूँकि हर पुस्तक को पाठ्य-पुस्तक की संज्ञा नहीं दे सकते इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए विद्वान गुड ने परिभाषा दी है -“एक निश्चित पाठ्यक्रम के अध्ययन के प्रमुख साधन के रूप में एक निश्चित शैक्षिक स्तर पर प्रयुक्त करने के लिए किसी खास विषय पर लिखी व्यवस्थित पुस्तक पाठ्य-पुस्तक कहलाती है।”

Published

10 May 2022

Series

Details about the available publication format: Paperback

Paperback

ISBN-13 (15)

978-93-94411-20-3

How to Cite

Chander, R. . (Ed.). (2022). हिंदी शिक्षण की पाठ्यपुस्तकों का मूल्यांकन. In (Ed.), हिंदी शिक्षाशास्त्र (pp. 90-109). Shodh Sagar International Publications. https://books.shodhsagar.org/index.php/books/catalog/book/31/chapter/176