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मूल्यांकन की भूमिका एवं महत्त्व
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Synopsis
’मूल्यांकन’ शब्द दो शब्दों के योग से बना है-“मूल्यः और “अंकन’ । इस प्रकार मूल्यांकन का शाब्दिक अर्थ छात्र के गुण-दोषों की विवेचना कर उसके सम्बन्ध में सही निर्णय करना या उसके यथार्थ मूल्य को निर्धारित करना है। अन्य शब्दों में मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी कार्य-वस्तु या व्यक्ति का मूल्य निर्धारित करने का कार्य किया जाता है। हम इस प्रक्रिया द्वारा प्रत्येक योग्यता का मूल्यांकन कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में थोर्नहईक का मत है कि “कोई भी वस्तु जिसका अस्तित्व है वह किसी मात्रा में होती है और जब वह किसी मात्रा में है तो उसे मापा जा सकता है”। थोर्नडाइक के इस कथन का आशय है कि हम किसी प्रकार से प्रत्येक वस्तु को माप सकते है। परन्तु उस वस्तु का किसी न किसी मात्रा में उपस्थित होना आवश्यक है। इस प्रकार प्रत्येक प्रकार की योग्यता का मूल्यांकन करना भी संभव है। जहाँ तक छात्रों की योग्यता के मूल्यांकन का प्रश्न है - वह एकपक्षीय नहीं है। मूल्यांकन में छात्र की मात्र शैक्षिक प्रगति की जाँच नहीं होती वरन उसके शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक सभी गुणों की जाँच सम्मिलित है।
शिक्षा स्थिर न होकर एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके फलस्वरूप बालक की शैक्षिक योग्यताओं, रुचियों, आदतों, अभिवृतियों तथा व्यवहार में निरंतर परिवर्तन चलता रहता है। मूल्यांकन प्रक्रिया से यह पता करने का प्रयास किया जाता है कि शिक्षण से बालक के व्यवहार में किस सीमा तक परिवर्तन हुआ है। इसके लिए बालक के व्यवहार से जुड़े तथ्यों को एकत्रित किया जाता है और उसकी विवेचना की जाती है।
मापन
सृष्टि के समस्त पदार्थों और व्यक्तियों में परस्पर भिन्नता का गुण पाया जाता है। इस भिन्नता को परिभाषित और अभिव्यक्त करने के अनेक उपाय हैं जिन्हें मापन द्वारा स्पष्ट किया जाता है। भाषा- शिक्षण के संदर्भ में मापन द्वारा भाषाई तत्वों के अधिगम में विद्यार्थियों की व्यक्तिगत भिन्तता का आकलन और प्रस्तुतीकरण किया जाता है। मापन से हमें व्यक्ति के अतीत का आभास होता है जिससे वर्तमान को समझने का आधार प्राप्त होता है और भविष्य की समस्याओं के समाधान में मदद मिलती है।
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