Chapter Title:
घटनोत्तर अनुसंधान
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Synopsis
अर्थ एवं स्वरूप
घटनोत्तर अनुसंधान भी एक ऐसा अध्ययन होता है जिसमें स्वतंत्रत एवं आश्रित चरों के बीच कार्य-कारण संबंध की स्थापना की जाती है। अतः इसे भी प्रयोगात्मक अनुसंधान की श्रेणी में रखा गया है, परन्तु सत्य प्रयोगों की श्रेणी में इसे नहीं रखा जाता क्योंकि प्रयोगों में स्वतंत्र चर के प्रहस्तन प्रयोग की शोधकर्ता को स्वतंत्रत होती है जो घटनोत्तर अनुसंधान में नहीं होती। प्रयोग में स्वतंत्र चर के कई स्तर बनाकर इकाइयों को उतने ही समूहों में समसंभाविक रीति से वितरित किया जाता है। इसमें तुलनीय समूह स्वतंत्रत चर के आधार पर बनाए जाते हैं, परन्तु घटनोत्तर अनुसंधान में ये समूह आश्रित चर के आधार पर बनाए जाते हैं अर्थात् अनुसंधान की प्रक्रिया आश्रित चर से प्रारंभ होती है। इसीलिए मौलि ने घटनोत्तर अनुसंधान को प्रतिवर्तित प्रयोग कहा है क्योंकि इसमें स्वतंत्र एवं आश्रित चर का क्रम प्रयोग क्रम के ठीक विपरीत हो जाता है। प्रयोग में स्वतंत्र चर पर पहले विचार किया जाता है तथा उसके आधार पर तुलनीय समूह बनाए जाते हैं जबकि घटनोत्तर अध्ययनों में आश्रित चर पहले आता है अर्थात् पहले उसके आधार पर तुलनीय समूह बनाए जाते हैं। प्रयोग में तुलनीय समूहों की आश्रित चर के आधार पर तुलना की जाती है।
इसके विपरीत घटनोत्तर अध्ययनों में तुलनीय समूहों की तुलना स्वतंत्र चर के आधार पर की जाती है। घटनोत्तर अनुसंधान के आश्रित चर पर समूह वास्तव में बनाए नहीं जाते बल्कि वे परिवेश में बने-बनाए उपलब्ध होते हैं जो एक-दूसरे से भिन्न होते हैं, जैसे लडके -लड़कियाँ, ग्रामवासी-नगरवासी, अमीर-गरीब, निम्न-उपलब्धिधारी, उच्च-उपलब्धिधारी, अधिक-बुद्धिमान-कम- बुद्धिमान आदि। इनमें अन्तर-भिन्नता होने का कारण खोजने हेतु तत्पश्चात् उपकल्पित चरों ;स्वतंत्रत चरोंद्ध पर उनकी तुलना की जाती है। उदाहरण केलिए, यदि हमें छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि-प्रेरणा केनिम्न स्तर का कारण ज्ञात करना हो तो हम निम्न स्तरीय प्रेरणा वाले तथा उच्च स्तरीय प्रेरणा वाले छात्रों के समूहों को चुन लेंगे तथा उनकी तुलना किसी उपकल्पित चर ;जैसे, बुद्धि अथवा छात्रों का पारिवारिक परिवेशद्ध पर करेंगे।
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