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सारांश
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Synopsis
मापन एवं मूल्यांकन की प्रक्रिया प्राचीन है इसका प्रयोग केवल शिक्षा एवं मनोविज्ञान में ही नहीं किया जाता अपितु इसका प्रयोग अनेक क्षेत्रों में किया गया है। इसका आरम्भ भौतिक विज्ञान से हुआ है। मापन के सम्बन्ध में यह धारणा है कि इसका विकास मानव सभ्यता के विकास में ही हुआ है। आज जो राष्ट्र सबसे अग्रणी माना जाता है उसकी मापन की विधियाँ भी अधिक शुद्ध हैं। मापन की प्रक्रिया औपचारिक है जबकि मूल्यांकन की प्रक्रिया अनौपचारिक है जो निरन्तर चलती रहती है। मूल्यांकन सभी- वस्तुओं, गुणों एवं तथ्यों का निरन्तर होता रहता है।
मूल्यांकन प्रक्रिया गुणात्मक है जबकि मापन की प्रक्रिया परिमाणात्मक होती है। भौतिक विज्ञान में मापन का प्रयोग अधिक प्राचीन है जबकि शिक्षा एवं मनोविज्ञान में मापन बीसवीं सदी की देन है। जबकि मूल्यांकन प्रक्रिया का प्रयोग शिक्षा में अधिक प्राचीन समय से किया गया। शिक्षा के आरम्भ में मूल्यांकन प्रक्रिया का आरम्भ हुआ है।
मनोविज्ञान का आधार व्यक्तिगत भिन्नता है। व्यक्तिगत भिन्नता का सही अध्ययन मापन के द्वारा किया जाता है। कार्ल पीयरसन ने व्यक्तिगत भिन्नता को पहचानने तथा उसके स्वरूप के विश्लेषण के लिये वैज्ञानिक तथा अधिक विकसित प्रविधि का विकास किया है। मापन का दर्शन हमें अतीत के सम्बन्ध में जानकारी देता है जिससे वर्तमान को समझने में सहायता मिलती है और भविष्य की समस्याओं के समाधान में मापन का प्रयोग किया जा सकता है।
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