Chapter Title:
सॉंग की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
Book Title:
Synopsis
मनोरंजन मनुष्य की स्वाभाविक व बौद्धिक प्रवृत्ति है । तभी अभिव्यक्ति की परम्परा ने विभिन्न लोक नाट्य शैलियों को जन्म दिया है जिसके माध्यम से लोक संस्कृति के दर्शन होते हैं । हरियाणा की सुप्रसिद्ध लोकनाट्य शैली ‘‘सॉंग’’ है । सॉंग का वर्तमान स्वरूप एकदम न आकर इसका क्रमिक विकास हुआ है। कश्मीर की भाण्डपथर, पंजाब के नक्काल, राजस्थान के ख्याल, उत्तर प्रदेश की नौटंकी व रास, बिहार व बंगाल के यात्रा या जात्रा आदि लोकनाट्य शैलियों का अध्ययन करें तो सॉंग सबसे सम्पूर्ण लोकमंच कला है । क्योंकि अन्य लोकनाट्य कलाओं में किसी में संगीत की प्रधानता है तो किसी में अभिनय, संवाद, गायन, कथा व भक्ति रस आदि की अधिकता रहती है । सॉंग की विशिष्टता यह है कि इसमें अभिनय, संवाद, नृत्य, संगीत, गायन कथा, भक्ति भाव व आध्यात्मिकता, नियमानुसार सभी तत्वों का सामंजस्य है । सॉंग हरियाणवी जन मानस के लिए केवल मनोरंजन का साधन न होकर उनके जीवन-दर्शन की झलकी व लोक संस्कृति का परिचायक है । यह पारंपरिक विरासत है जो लोगों के मन, कर्म, वचन को प्रभावित करती रही है तथा जीवन मूल्यों, जीवन पद्धतियों और परम्पराओं का परिचय देती रही है ।1
1. सॉंग का शाब्दिक अर्थ:
सॉंग या स्वांग हरियाणा का कौमी नाट्य कहा जा सकता है । जनरंजनकारी यह विद्या हरियाणा के लोकमानस पर जादू का-सा प्रभाव डालती है। इसके मंच के चारों ओर बैठे दर्शक रागनियों की स्वर-लहरियों, नृत्य एवं वाद्य संगीत को देख सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं । तख्त तोड़ नाच, गलबहियां तथा घुंघट के फटकारे जनता की वर्णनातीत वाह-वाह लूटते हैं । पांच-छः घंटे तक निरन्तर अभिनीत होने वाले इस प्रदर्शन में पुरूष ही नायक एवं नायिका की भूमिका लिंगानुरूप वेशभूषा में निभाते हैं ।
Published
3 January 2023
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Details about the available publication format: Paperback
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ISBN-13 (15)
978-93-94411-46-3
How to Cite
Singh, R. . (Ed.). (2023). सॉंग की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि. In (Ed.), सांगितिक दृष्टिकोण से धनपत सिंह और जीयालाल के सांगों का समीक्षात्मक अध्ययन (pp. 1-12). Shodh Sagar International Publications. https://books.shodhsagar.org/index.php/books/catalog/book/57/chapter/310