Chapter Title:

सॉंग में प्रयुक्त लोककथाए तथा लोकगीत

Book Title:


Authors

Dr. Rajender Singh
Lecturer in music. Jat Sr.Sec.School, JIND

Synopsis

सॉंग में प्रयुक्त लोककथाए
लोक साहित्य में लोक-कथाओं का प्रमुख स्थान है । ये अपनी प्रचुरता तथा लोकप्रियता के कारण अत्यन्त महत्वपूर्ण है । सदियों तक ये लोककथाएॅं ग्रामीण लोगों के मनोरंजन का प्रमुख साधन रही हैं । रात्रि के समय माताएॅं अपने छोटे-छोटे बच्चों को सुन्दर कहानियॉं सुनाकर उन्हें आनन्द प्रदान करती है। बच्चे इन कहानियों को सुनते-सुनते सो जाते हैं । सर्दी की रात्रि में गोसों आदि की आग के चारों ओर ग्रामीण लोग बैठे होते थे और कथा सुनाने का सिलसिला शुरू हो जाता था । चौपालों में भी रात के समय दिन के थके मान्दे किसानो के हुक्के की ‘गुढ़-गुढ़’ की आवाज के बीच लोककथाओं का स्वर सुनाई देता है ।
    प्राचीन काल में यहॉं तक कि आज से 45-50 वर्ष पूर्व तक भी कहानी सुनना एक कला माना जाता रहा है । हरियाणा में तो प्रायः हर ग्राम में एक-दो व्यक्ति कहानी कहने की कला में दक्ष होते थे । व्यास लोगों का तो एक तरह से यह व्यवसाय ही बन गया था । जिस प्रकार वीर गाथा काल के अनेक काव्यों को सुरक्षित बनाए रखने में भाट, मिरासी और चारण लोगों की वंश परम्पराओं का योगदान रहा है, उसी प्रकार ‘सिंहासन बतीसी’ और बेताल-पच्चीसी सरीखी श्रृंखलाबद्ध कहानियॉं भी दीर्घकाल तक वंश परम्परा या गुरू-शिष्य परम्परा के सहारे ही जीवित रही हैं । हरियाणा में कहानियॉं सुनाने का व्यवसाय अधिकतर व्यास जाति के लोगों का ही रहा है । व्यास लोग भी भाटों, मिरासियों की भांति ब्राह्मणों की तरह ही माने जाते हैं । इनके कहानी सुनाने में एक विशिष्टता होती थी । बोलते समय ध्वनि में आवश्यकता अनुसार उतार-चढ़ाव करते रहना उनकी कहानी कहने की कला का एक आवश्यक अंग था ।

Published

3 January 2023

Series

Details about the available publication format: Paperback

Paperback

ISBN-13 (15)

978-93-94411-46-3

How to Cite

Singh, R. . (Ed.). (2023). सॉंग में प्रयुक्त लोककथाए तथा लोकगीत. In (Ed.), सांगितिक दृष्टिकोण से धनपत सिंह और जीयालाल के सांगों का समीक्षात्मक अध्ययन (pp. 39-73). Shodh Sagar International Publications. https://books.shodhsagar.org/index.php/books/catalog/book/57/chapter/312