Chapter Title:

धनपत सांगी तथा जीयालाल सांगी के सांगों का सांगितिक विश्लेषण

Book Title:


Authors

Dr. Rajender Singh
Lecturer in music. Jat Sr.Sec.School, JIND

Synopsis

अध्याय में हम दोनों सांगियों के सांगों का सांगेतिक विश्लेषण कर रहे हैं । इन दोनों सांगियों के पांच-पांच सांगों का छोटा रूप लिया गया है । अन्त में इनकी दो-दो रागनियों को स्वरलिपि बद्ध किया है । पहले धनपत सिंह के पांच सांगों का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है: 
       1.     राजा हरिश्चन्द्र 
       2.     ज्यानी चोर 
       3.     हीर-रांझा 
       4.     लीलो चमन 
       5.     बणदेवी 
इसी प्रकार हमने जियालाल सांगी के भी पांच सांगों का वर्णन किया है जिनके नाम इस प्रकार हैं: 
       1.     प्रेम कला आजाद माल़ी 
       2.     सोमवती-चाप सिंह 
       3.     गजना (शाही मनियारा) 
       4.     फूल चमेली-फूलकवार 
       5.     सत्यवान-सावित्री 
अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि धनपत सिंह ने जिस सांग परम्परा को आगे बढ़ाया, उसी परम्परा को आधुनिक परिवेश में समायोजन हेतु इनके पोते चेले श्री जियालाल सांगी ने कुछ परिवर्तन किये । जैसे: उंगली तो धनपत सिंह भी मारते थे लेकिन जियालाल सांगी अलग तरह से मारते थे । धनपत सिंह लय की गति धीमी रखते थे । उन्होंने लय की गति को तेज कर दिया । जियालाल सांगी ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सांग वादन शैली को मिलाकर अलग वादन शैली तैयार की जिसे प्रसिद्ध ढोलक वादक मैनपाल मिसा बाज बताते हैं जियालाल सांगी का हाथ मारना, एक टांग के सहारे लय के अनुसार नर्तक के पीछे-पीछे चलना, अभिनय का सामान दूसरे सांगियों से ज्यादा रखना । जैसे आवाज देने वाला कोरड़ा, तलवार, पिस्तौल, पोषाक आदि । आधुनिक कलाकार उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए अपने सांग भिन्न-भिन्न माध्यमों के सहयोग से वर्तमान में प्रस्तुत कर रहे हैं ।

Published

3 January 2023

Series

Details about the available publication format: Paperback

Paperback

ISBN-13 (15)

978-93-94411-46-3

How to Cite

Singh, R. . (Ed.). (2023). धनपत सांगी तथा जीयालाल सांगी के सांगों का सांगितिक विश्लेषण. In (Ed.), सांगितिक दृष्टिकोण से धनपत सिंह और जीयालाल के सांगों का समीक्षात्मक अध्ययन (pp. 92-141). Shodh Sagar International Publications. https://books.shodhsagar.org/index.php/books/catalog/book/57/chapter/314